नई दुनिया ( DELHI) में 28/08/2010 को प्रकाशित
आजकल हम सांसदों के दिन ही बहुत बुरे आ गए हैं। कोई हमारी सुनने को ही तैयार नहीं है। कहां हम दिन-रात लोगों की नहीं सुना करते थे। लोग कह-कहकर परेशान हो जाते थे लेकिन हमारे कानों पर जूं नहीं रेंगती थी। पर हमारा हाल भी अब जनता जैसा हो गया है।
इतने दिनों से मांग रहे हैं। कि भई हमारी मजूरी बडा दो। हमारी तन्खवाह ज्यादा कर दो। पर कोई मान नहीं रहा। अब देखिए न मंहगाई कितनी बढ गई है। हर चीज कितनी मंहगी हो गई। तुम क्या समझते हो हमें मंहगाई का पता ही नहीं है। ये तुम जो दिन-रात मंहगाई का रोना रोते हो। वो क्या हमारे कान में नहीं पडता। कितनी ही बार हमने खुद अपनी आंखों से अखबार में पड़ा है कि मंहगाई कितनी बढ गई है। तुम समझते हो कि हमें घर से कोई नहीं कहेगा तो हमें पता ही नहीं चलेगा। हमें सब पता है। हमने एक बार टी०वी० पर भी सुना था।
अब जब सब कह रहे हैं। तो सही ही कह रहे होंगे। हमारी आवाज न सुनो। तो कम से कम जनता की आवाज तो सुनो। अब तन्खवाह भी मामूली सी बड़ी है। तीन सौ गुना कितने से हैं। कोई हमें गरीबी की रेखा से नीचे बसर करने वाला समझ रखा है। अब पचास हजार रूपए में आजकल आता क्या है। ये तो हमारे एक बच्चे के जेबखर्च से भी कम है। बीवी का खर्च सुनोगे तो दस गुना वेतन भी कम पडता नजर आएगा।
अब लोग हंसते हैं। भई हमें वेतन की क्या जरूरत। मैं जानता हूं हमारे यहां ऐसे लोगों की कमी नहीं है। जो सांसद का पद मुफत में स्वीकार करने को तैयार है। पर भैया ये पद क्या हमने ऐसे ही लिया है। पूरा जीवन झोंक दिया है। जब जाकर यह पद मिला है। आज सरकारी कर्मचारियों ने छठा वेतन आयोग ले लिया। वे मजे में हैं। बैंक वालों की तनखवाऐं अच्छी हो गई है। और उपर से सब स्थाई हैं। अब भैया हम तो कोई परमानेंट कर्मचारी तो हैं नहीं। बस आज हैं, कल का क्या भरोसा। और फिर यहां तक कैसे आए हैं हम ही जानते हैं।अब भई सभी लोगों के मजे हैं। खूब सुविधाऐं हैं। जीवन भर मजे करते रहते हैं। सभी अपने बच्चों के प्रति कितने सजग रहते हैं। अब सब तो अपने बच्चों के लिए इतना सोचें तो हम क्या अनाथ छोड़ दें। हमें उनका भविद्गय नहीं दिखता क्या। क्या उन्हें सांसद, विधायक बनने की अधिकार नहीं है क्या। कल से उन्हें भी चुनाव लडने हैं, चार पैसे नहीं बचेंगे तो कैसे चुनाव लड पाएंगे अब ये बच्चे भी क्या करें। शुरू से ऐसे माहौल में रहते हैं। कैरियर के रूप में ले देकर राजनीति ही बचती है। फिर बीवी को भी तो कुछ करना ही पडता है जहां घर चला लेती है वहां देच्च चलाना कौनसी बड़ी बात है। और कल से इसके लिए कोई पद की फ्रिक नहीं करो तो फिर तुम ही आरोप लगाओगे कि देखो महिलाओं के अधिकार की रक्षा नहीं कर रहे हैं। यहां सबसे बड़ी बात आती है कि हम तो लाख इन्हें चुनाव लड़ाएं पर फिर चुनाव लडने के बाद जीतने की क्या गारंटी है।
सो बस इसीलिए लगे पड़े हैं। वेतन बढवाना ही चाहते हैं। सरकार तीन सौ प्रतिशत पर तो मान गई है। पर इतने से क्या होता है। हमें मिलता ही क्या है। थोड ा सा कार्यालय खर्च, संसद भत्ता, मुफत बिजली, घर और थोड़ी सी पेंशन । कुछ रेलवे के फ्री पास देते हैं। अब इनमें कौनसा अहसान कर रहे हैं। रेलवे और रोडवेज के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों तक को भी यह सुविधा आजीवन मिलती है।
अब सुन भी लो। बडवा भी दो।पांच सौ प्रतिशत की तो कह रहे हैं। वैसे काम तो हमारा हजार से भी नहीं चलेगा। पर कोई बात नहीं गरीब देश होने के नाते गुजर-बसर कर लेंगे। काट लेंगे। भगवान तुम्हारा भला करे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें