रविवार, 3 अक्तूबर 2010

व्यंग्य कॉमनवेल्थ नियमावली

नई दुनिया में आज दिनांक 4-10-10 को प्रकाशित व्यंग्य



कॉमनवेल्थ गेम्स केवल खेल नहीं, राष्ट्रीय पर्व हैं और पर्वों को सफल बनाने के लिए हमें कुछ व्रत लेने पड़ते हैं, कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। अतः यह भव्य आयोजन सफल बनाने के लिए हमें भी कुछ करने की जरूरत है। आशा है, आप हमेशा की तरह निराश नहीं करेंगे।

सर्वप्रथम, हमें चेहरे पर मुस्कराहट का स्थायी भाव रखना पड़ेगा। यह जरूरी है क्योंकि हमने सभी मेहमानों से कह दिया है कि "अतिथि देवो भव"। क्या पता वे इसे सही मान बैठे हों। सो आप सभी लोग इस बात का ध्यान रखें। अब हो सकता है कि पीछे से कोई मच्छर आपको काट रहा हो। आपको डेंगू का भय सता रहा हो। लेकिन सावधान, उन्हें बिल्कुल नहीं एहसास दिलाना है। हालांकि यह एक मुश्किल काम है क्योंकि इतनी विषम परिस्थितियों में रहने के कारण तुम मुस्कराना भूल गए हो। पर देश के लिए इतना त्याग तो करना ही पड़ेगा। लगातार मुस्कराने के कारण हो सकता है तुम्हें खांसी आने लगे पर खांसना मत। अतिथियों के नाजुक मन पर स्वाइन फ्लू का भय आ गया तो हमारी तो नाक ही कट जाएगी।

यातायात के नियमों के पालन न करने की तुम्हारी जन्मजात आदत है पर उसे कुछ दिन के लिए सुधार लेना। अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारी आजादी पर कुठाराघात है तो घर से ही मत निकलना। मन न माने तो जी कड़ा कर लेना क्योंकि आयोजन को सफल बनाने में लगी भारतीय पुलिस तुम्हें डंडा भी मार सकती है। इस डंडे को प्रेमभाव से स्वीकार करना। विरोध करने पर देश की छवि बिगड़ सकती है। अगर कुछ दिन लाइट व पानी की परेशानी हो तो उसे हंसकर स्वीकार करना। तुम्हें कुछ कहना नहीं है।

हालांकि भारतीय पुलिस सजग है लेकिन फिर भी यदि कोई तुम्हारा पॉकेट मार ले, घर में चोरी कर ले तो खेलों के सफलतापूर्वक संपन्न होने का इंतजार करना। रिपोर्ट की जल्दी मत करना। कोई गुंडा बदमाश छेड़े या लूटपाट करने की कोशिश करे तो दे-लेकर निपटा लेना। लुट जाना, पिट जाना। कहीं पुलिसवाला सामने भी दिख भी जाए तो आवाज मत लगा बैठना। समूची पुलिस एक महत्वपूर्ण समारोह संचालित करने में जुटी है। तुम्हें उसे डिस्टर्ब नहीं करना है। यूं तो भिखारियों को हम पहले ही बाहर भिजवा चुके हैं लेकिन फिर भी घर से बाहर निकलो तो नहा-धोकर, साफ कपड़े पहनकर निकलना, नहीं तो उन्हें लगेगा कि तुम वापस आ गए हो। अगर तुम्हें कोई अतिथि स्लम की ओऱ जाता हुआ दिखाई दे तो उसे उधर जाने मत देना। कुछ भी झूठ बोल देना। घबराना मत। हम भी तो इतने समय से बोल रहे हैं।

हमें कुछ भी करना पड़े। पर इन खेलों को सफल बनाना है। ७० हजार करोड़ रुपए स्वाहा हुए हैं। भूखे मरो, बीमार मरो, असुविधा में जीओ पर हमें देश की छवि का तो खयाल करना ही है

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