रविवार, 1 अगस्त 2010

व्यन्ग व्यन्ग नासा वालों के नाम

इन दिनों मैं बहुत शर्मिंदा हूं। किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा। क्या करूं, अपने अभियान में असफल रहा। तुम और मैं एक ही मिशन पर काम कर रहे थे। हम दोनो पानी की खोज में लगे हुए थे, तुम नासा मिशन वाले चाँद पर पानी खोज रहे थे और मैं अपने घर के नल में। प्रयास मैंने भी बहुत किए, पर अंततः बाजी तुम मार गए। मैं परेशान हूं, मैं इतने समय से कोशिश में लगा हुआ हूं , पर कुछ हो नहीं पाया।
जबसे तुमने चाँद पर पानी खोजा है बीवी मुझसे बहुत नाराज है। दिन-रात ताने देती रहती है। कहती है मेरे पिताजी ने पता नहीं क्या सोचकर ऐसे आदमी के पल्ले बांध दिया जो मुझे पानी तक नहीं पिला सकता। तुमसे घर के नल में पानी नहीं ढूंढा गया। और वहां नासा वालों ने तो चाँद पर भी पानी ढूंढ मारा।
पर सही बात है कि मैं अकेला कर भी क्या सकता हूं। तुम लोग बड़े आदमी हो, इतने संसाधन हैं। तुम तो कुछ भी कर सकते हो। कोई मैं तुम्हारी बराबरी थोड़े ही कर सकता हूं। किन्तु वो मेरे पीछे ही पड़ी हुई है, बस बार-बार यही कहती है कि जरा आप भी नासा वालों की मदद ले लो और पानी खोजो पर अब मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं। इसे कैसे समझाउं कि भारतीय भूमि और चन्द्रभूमि, दोनों में बहुत अंतर है। इस धरा पर कोई कार्य सम्पन्न कराना कोई आसान काम थोड़े ही हैं। चाँद पर तो पानी कोई भी ढूंढ सकता है पर इस भू पर अवतरित होकर ऐसे प्रयास करें तो पता चलेगा कि यहाँ काम करना कैसा होता है। पर मेरी पत्नी नहीं मान रही। बार-बार यही कह रही है। कि अगर तुम नासा वालों की मदद नहीं लोगे तो मैं ही उन्हें बुला लूंगी।
मैं इन दिनों यही सोच रहा हूं। कि तुम्हें मेरे मोहल्ले के नलों में पानी ढूंढने के लिए लगा दिया जाए। तो क्या परिणाम निकलेगा। क्या तुम पानी खोज पाओगे। पर तुम मेरी पत्नी की बातों में आकर ऐसी कोशिश मत कर बैठना। वरना पागल ही हो जाओगे।
देखो, यह सब बातें तुमसे इसलिए कह रहा हूं। कि तुम चाँद की भूमि से भले ही परिचित हो। पर इस धरा के महत्व को नहीं जानते। यहाँ पर खोज शुरू करने से पहले ही कितने पापड़ बेलने पड़ेगे। सर्वप्रथम पानी की खोज शुरू करने के लिए तुम्हें पहले जलदाय विभाग के दफतर को खोजना पड़ेगा। बहुत सारे दफतरों में से एक दफतर है, अगर किस्मत से वो मिल गया। तो रामखिलावन को ढूंढना पड़ेगा। रामखिलावन कौन, अरे वहां का चपरासी। भगवान को ढूंढना आसान है पर उसे ढूंढना बहुत मुश्किल है। उसका आधा समय तो बाजार में पान की दुकानों पर बीतता है। तो नासा वालों तुम्हारी खोज का सर्वप्रथम स्थल होगा। चाय व पान की दुकानें। सबसे पहले इन दुकानों पर सेटेलाईट लगाना पड़ेगा। जिस तरह चाँद के गर्भ में जाकर संयत्र कुछ बताने में समर्थ हो पाते हैं। वैसे ही एक जर्दे का पान अंदर जाने के बाद ही रामखिलावन इस स्थिति में आता है। कि वो कुछ बता सके।
उससे प्राप्त सूचना के आधार पर जब तुम कार्यालय के अंदर प्रवेश करोगे। तो वहां नाना प्रकार की खाली मेजें तुम्हारा इंतजार करती हुई मिलेगी। शायद खाली कक्ष देखकर तुम यह गलतफहमी पाल लो कि सब-कुछ कार्य यंत्रचालित होता है। पर एकाध घंटे बाद कोई बाबू आएगा। तो उसे देखकर तुम्हारे संशय का निवारण हो जाएगा।
पर वो बाबू तुम्हें देखकर अनदेखा कर देगा। सरकारी कार्यालयों में लोगों की निजी स्वतंत्रता का इतना ध्यान रखा जाता है। कि तुम अगर सुबह से शाम तक खड़े रहोगे। तो कोई यह नहीं पूछेगा। कि आप कौन है व किस कार्य हेतु पधारे हैं। पूछताछ का नैतिक अधिकार केवल आपका ही है। और उसे आप ही को संचालित करना है।
लेकिन नासा वालों, यह गलतफहमी मत पालो। कि उन बाबूओं का जन्म तुम्हें यह सब बताने के लिए ही हुआ है। तुम दस बार पूछोगे तो एक बार उनकी गर्दन उपर होगी। बड़ी मुश्किल से वे कुछ कह पाऐंगे। क्या करें बिचारों के पास काम ही बहुत है। अब तुम्हें एक नई तकनीक का पता चलेगा। जिसे कि ‘पास’ करना कहते हैं। तुम्हें फाईल के बारे में यह पता चलेगा कि यह काम शर्मा देखता है। पर शर्मा उसे वर्मा के पास, वर्मा तिवारी के पास व तिवारी उसे मलिक के पास बताएगा। पर मलिक अंततः यही कहेगा कि यह काम वाकई गुप्ता देखता है जो फिलहाल दस दिनों की छुटट्ी पर गया हुआ है। एक बार नासा को रामखिलावन की सेवा करनी पड़ेगी। जो यह बताएगा। कि मोहल्ले की नल-लाईनों की फाईलें कौनसे बाबू के पास है।
कहते हैं कि सेवा करने से ही मेवा मिलता है। अब तुम्हें पता चलेगा कि फाईल तो मलिक ही देख रहा है।वो तो तुमने ही पता ठीक से नहीं बताया इस लिए उसने गुप्ता का नाम लिया। वो यही कहेगा कि एक तो गलती करते हो। उपर से...। पर कोई बात नहीं बुजुर्ग सही कह गए हैं। कि सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। सो यंहा तुम सेवा करोगे तो वो अवश्य नर्म पड़ेगा। उसकी नर्माहट से उसके दिमाग का तापमान स्थिर होगा, जिससे फाईल ढूंढने में मदद मिलेगी और फिर ईश्वर की दया से दो-चार हफते जाने के बाद वह दिन आएगा। जब फाईल मिलेगी।
तुम अमरीका में रहते हो।सो फाईल मिलते ही चैन की सांस लोगे। पर साहब चाहे तुम लाख अनुसंधान करते हों। पर तुम्हारी रिसर्च यहाँ के आगे फेल है। क्योंकि अभी फाईल-अनुसंधान शेष है। यहाँ चाँद के हिसाब से थोड़े ही चलता है कि तुमने जहाँ चाहा पानी खोज लिया। अब नियम-पालिसियां भी कोई चीज है। ये सब सोच-समझकर बनाई गई है। सो अब नासा के अनुसंधानकर्ताओं, अब तुम पर अनुसंधान शुरू होएगा।
हमारे देश के शाश्वत नियमों में से एक यह है कि जब फाईल बाबू की मेज तक पहुंची है। तो उसमें दोष निकलना तय है। क्योंकि अभी तो फाईल में नाना प्रकार के दोष हैं। न जाने कितने प्रकार के अनापत्ति-प्रमाणपत्रों की जरूरत महसूस की जा रही है। न जाने कितने नियम अनदेखे रह गए हैं। तुम सोच रहे हैं। कि फाईल पूर्ण है। तो गलत सोच रहे हैं। अभी तो इसमें आधे से ज्यादा कागज तो लगे ही नहीं है। अब यहाँ पर भी कुछ महीने इसमें लगने स्वाभाविक है।
खैर इस बात में तुम्हें अधिक तकलीफ नहीं होगी। क्योंकि नासा के मिशन भी बहुत लंबे-लंबे होते हैं। एक दिन ऐसा आएगा कि नाना प्रकार की सेवाओं के बाद फाईल पूर्णता को प्राप्त कर लेगी।तुम चैन की सांस लोगे। पर साहब चैन आजकल के जीवन किसे मिला है। सो अब तुम एक नई दुनिया में प्रवेश करोगे। हमारे कार्यालयों की एक व्यवस्था से तुम परिचित होंगे। जिसे चरण-व्यवस्था कहते हैं। तुम्हें मेरे नल में पानी खोजना है। तो अब फाईल नाना प्रकार के बाबूओ, अफसरों व विभागों के चक्कर लगाएगी। यहाँ सब अपने-अपने विवेक और सेवा के अनुसार टिप्पण देंगे। पहली बात तो फाईल यह नोट लगकर बंद हो सकती है। कि चूंकि नासा एक प्राईवेट एंजेंसी है। अतः उसे यह अधिकार नहीं दिया जा सकता।
हो सकता है। तुम कुछ भारी सेवा कर दो। तो यह फाईल आगे बढ़ जाऐ । लेकिन आगे निश्चित है कि विभाग की कोई कमी नहीं नजर आएगी। एक दिन फाईल पर यही नोट लगा हुआ आएगा कि ‘प्रार्थी का प्रार्थना पत्र झूंठा है, रिकार्ड से पता चला है कि पानी की सप्लाई तो अनवरत की जा रही है।’
अब नासा वालों तुम करना हो, जो कर लो। जो चाहे। तुम पशोपेश में पड़ जाओगे। कि पानी तो मेरे नल के लिए चला है। तो फिर कहाँ गायब हो गया।तुम मेरी तरफ देखोगे। सही है साहब। कोई सरकारी विभाग वाले झूठ नहीं बोल रहे। पानी वहाँ से चलता जरूर है। बिचारे पानी की क्या औकात। सप्लाई दी जाएगी। तो जाएगा ही। पर बीच में कहां गायब हो गया। यह रहस्य का विषय है।
अजी साहब यही तो है। हमारे यहाँ यह एक बहुत बड़ी समस्या है। हमारी व्यवस्था में किसी चीज का अभाव नहीं है। जिस तरह जलदाय विभाग से मेरे नल के लिए पानी चला। उसी तरह हमारे यहाँ सब होता है। नाना प्रकार के बजट गरीबों के लिए चलते हैं, पर वो वहाँ तक नहीं पहुंचते। कई तरह की योजनाऐं उनके लिए बनती है। पर उन तक नहीं पहुंच पाती। जानवरों का चारा उनके लिए चलता है। और बीच में इंसानों के पेटों में समा जाता है।
सो अब तुम्हारी रिसर्च का विषय यही रहेगा। कि पानी चला तो था। पर पहुंचा क्यों नहीं। अब साहब यही तो परेशानी की मूल जड़ है। तुमसोच रहे होंगे इस बात का पता नहीं। तो यह तुम्हारी गलतफहमी है। जलदाय विभाग की टंकी और मेरे नल के बीच की पाईपलाईन में हजारों कनेकशन हैं। जाने कितनी जगह लाईनें मुड़ती है। विभाग वालों ने मेरे घर की तरफ मोड़ी थी। पर साहब बीच में कितने प्रभावशाली लोग हैं। जिनकी पहुंच न जाने कहाँ तक हे .
अब भैया नासा वालों, जिनके हाथ में सत्ता है, ताकत है, जो सरकार तक को मोड़ सकते हैं वो भला पाईपलाईन नहीं मोड़ सकते। सो नासा-विशेषज्ञों, इतनी जहमत मत उठाओ, मत ज्यादा खोजबीन करो। मैं पहले ही तुम्हें बता देता कि मेरे नल में पानी इसीलिए नहीं आ रहा।
अब उन पहुंच वालों के खिलाफ तुम कुछ नहीं कर सकते। चाहे तो तुम यह प्रयास भी करके देख लो। चाँद पर इंसान नहीं मिला। इसलिए तुमने झट से पानी खोज लिया और पूरी दुनिया की निगाह में बन बैठे हीरो। पर भैया यह लोग तुम्हें आतंकवादी करार देंगे। तुम्हारे खिलाफ आरोप लगा देंगे कि विदेशी ताकतें उनके जल-देवता की अवमानना कर रहे हैं। फिर भी तुम नहीं माने तो फिर तो आन्दोलन ही खड़ा हो जाएगा। अब तुम्हारे पास जान बचाकर भागने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा।
फिर तुम अमरीका पहुंचकर कभी पानी की खोज का नाम ही नहीं लोगे। इसलिए तुम हमारे देश के बाहर कुछ भी खोजो। बाहर अंतरिक्ष में जाओ। पूरा सौरमंडल ही पड़ा है। बुध, मंगल, शुक्र, शनि, तुम्हारे जंचे जहां मेरी पत्नी की बात में आकर कभी मेरे नल में पानी खोजने की बात मत कर बैठना। नहीं तो फिर तुम्हें भगवान भी नहीं बचा सकता। आगे तुम्हारी मर्जी।