सोमवार, 30 नवंबर 2009

मौसम बड़ा बेईमान है

दैनिक हिन्दुस्तान में 1.12.2009 को प्रकाशित
नक्कारखाना






आज मौसम बड़ा बेईमान है।’ सचमुच जब भी यह गीत सुनता हूं। तो लगता है, कोई संत महापुरूष ब्रहम कथन का वाचन कर रहा है। मौसम पर आजकल भारतीय राजनीति की छाया पड़ गई है। पता ही नहीं चल पाता कि कब कौनसी करवट ले बैठे। जिस तरह हम किसी राजनीतिज्ञ के बारे में भविष्यवाणाी नहीं कर सकते, उसी तरह मौसम के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
मुझे मौसम विज्ञानियों पर तरस आता है। मौसम विज्ञानी और मौसम, दो असमान विचारधाराऐं हैं। मैं बचपन से देखता आ रहा हू। वो भविष्यवाणी कुछ करते हैं, पर मौसम है जो कुछ और हो जाता है।
पहले मैं पहले मौसम विभाग की बात को बहुत गंभीरता से लेता था। जब भी वो कहता, ‘जोरदार बारिश की संभावना है, बरसाती, छाते से लैस होकर निकलता था। पत्नी कहती,‘ ये क्या, आसमान तो साफ है, क्या कवच-कुंडल लेकर जा रहे हो।’
मैं मन ही मन हंसता। यह अज्ञानी मौसम की बात को क्या जाने। ये बिचारे सेटेलाईट से दिन-रात देख रहे है और यह मूढ़ आसमान देखकर एक पल में निर्णय ले रही है, बरसाती-छाता मत ले जाओ।
मैं हरदम साहसी योदधा की तरह निकल जाता। बस में, दफतर में लोगों की फबतियंा सुनता। पर हिम्मत नहीं हारता, अरे भई इतने पढ़े-लिखे लोग कह रहे है। करोड़ों-अरबों रूपए खर्च हो रहे है। सेटेलाईट भी बिचारा आसमान पर लटका हुआ है, दिन-रात मौसम पर निगरानी रख रहा है। कभी तो बरसेगा। पर कमबख्त सुबह से शाम तक एक बूंद भी नहीं टपकती।
बाद में मौसम विज्ञानी भी दयनीय भाव लिए बयान दे देता था। इसमें हमारी क्या गलती है। हमने तो बिल्कुल सही आकलन किया था, पूरा माप-तौल सही था। पर एक टाईम पर बादल ही नहीं आए,तो क्या कर सकते है।
अब बिचारा वो भी क्या करे, मौसम भी नैतिकता की पटरी से उतर गया है। कहीं भी कुछ भी उल्टा-पुल्टा कर देता है। एक और अंागन में गोरी खड़ी हुई वर्षा की फुहारों से भीगने का मन बना रही है, दूसरी ओर वो कहीं गल्र्स-कालेज में जाकर बरस जाता है।
मैं देख रहा हूं, वैज्ञानिक ग्लोबल-वार्मिंग की चेतावनी दे रहे है। वे गर्मी को लेकर परेशान हैं, भयभीत हैं। इतना खतरनाक वर्णन करते है। कि मेरी बेटी डर जाती है। ‘पापा क्या यह दुनिया भटट्ी में बदलने जा रही है।
लेकिन वो मौसम भी क्या, जो इन लोगों की बात मान ले। वो पैदाइशी बेईमान है। वो ऐसी करवट ले रहा है। कि लोग हक्के-बक्के है। चारों तरह ठंड ही ठंड है। आदमी बिचारा गर्मी शब्द ही भूल गया है। गरम कपड़े पहने रहा है, गरम चीजें खा रहा है और ठंड के मारे कंाप रहा है। ठंड जो है, हडिड्यों तक को जमा देने वाली है। रोज मैं उठता हूं, मौसम वैज्ञानिकों को स्मरण करता हूं, बेटी से कहता हूं,‘ बेटी चिंता मत कर। ठंड अब जाने ही वाली है, वैज्ञानिक कर रहे थे, बर्फ बस पिघलने वाली है। हमारे अस्तित्व को खतरा है।
पर बेटी अब मुझ पर विश्वास नहीं करती। वो हंसती है ‘पापा मैं तो जमती जा रही हूं। और आप भी बस। .... पर मैं भी क्या करूं। मेरी इसमें कोई गलती नहीं है। आजकल मौसम भी बड़ा बेईमान हो गया है। मैं कुछ नहीं कर सकता। सो रजाई ओढ़कर सो रहा हूं। ठंड वाकई बहुत हो गई है।
0000000000000