शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

व्यन्ग सड़क

अमर उजाला में १४-१०-१० को प्रकाशित व्यन्ग



प्यारी सड़क। तुम्हें प्यारी शब्द का संबोधन इसलिए नहीं दे रहा हूं कि तुम रूप और रंग में कैटरीना कैफ को मात दे रही हो। इस शब्द का प्रयोग यहां दार्शनिक रूप में किया जा रहा है, क्योंकि तुम अब अल्लाह को प्यारी हो गई हो।
तुम्हें देखकर भारतीय दर्शन में मेरा विश्वास गहरा हो गया है। दर्शन में कहा गया है कि सब कुछ क्षणिक है। सच ही तो कहा गया है, तुम ठीक से जन्म ले भी नहीं पाती हो कि मौत के नजदीक पहुंच जाती हो। किसी-किसी सड़क को देखकर तो लगता है कि उसकी जन्मतिथि और पुण्यतिथि एक ही है। कई बार सड़कें प्रसूति काल में ही दम तोड़ देती हैं।

बहुत समय पहले सुना था कि ढाका की मलमल बहुत ही महीन होती है। पर तुम्हारी परत तो उसे भी मात कर देती है। इतनी बारीक लगती हो कि कभी-कभी जमीन और तुममें कोई फर्क ही नहीं लगता। इसी से पता चलता है कि सड़क निर्माण की कला कितनी निपुणता हासिल कर चुकी है।

वर्षा ऋतु जा चुकी है। सभी लोग प्रसन्न हैं। ठेकेदार भी प्रसन्न हैं कि तुम्हारी अकाल मृत्यु के जो इलजाम उन पर लगने वाले थे, वे अब वर्षा को ट्रांस्फर हो जाऐंगे। ठेकेदार न केवल पुरानी सड़क का खून करने के आरोप से मुक्त होंगे, बल्कि नई सड़क के टेंडर से आह्लादित भी होंगे।

हे सड़क, तुम केवल सड़क नहीं हो, गड्ढे, पोखर, चरागाह, सभा-स्थल, निर्माण सामग्री वहन स्थल और न जाने क्या-क्या हो। कीचड़ भरा पोखर तलाशते मवेशी अब तुममें ये सारी विशेषताएं पाकर धन्य हैं। स्वाइन फ्लू और डेंगू के मच्छर तुम्हारी ही शरण में विकास की ओर अग्रसर होते हैं।

आज जहां लोग अलगाववाद की साजिश रच रहे हैं, वहां तुमने अपने एक ही स्वरूप से देश को एकता के अद्भुत सूत्र में बांध रखा है। जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक तुम एक जैसी नजर आती हो। वही डामर और सीमेंट रहित, गड्ढों और कीचड़ से युक्त, उन्मुक्त जानवरों के समूहों से सुसज्जित, कचरों से शोभित।

तुम अपने छोटे से जीवन में दूसरों के लिए जीती हो। सरकार बहुत कम कीमत में सड़क बनवाकर प्रसन्न है, ठेकेदार उस कम कीमत में से भी कमीशन देने के बाद लाभ कमाकर खुश है। जनता भी हर साल नई सड़क पाकर प्रसन्न है।

भारतीय दर्शन के मुताबिक, तुम आत्मा की तरह मरकर भी अजर- अमर हो। बेशक तुम मर चुकी हो, लेकिन जल्दी ही नए टेंडर निकलेंगे। तब तुम्हारा पुनर्जन्म होगा। बस इसी विश्वास के कारण तुम्हारी बार-बार अकाल मृत्यु मुझे उतना दुखी नहीं करती।

शरद उपाध्याय

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