शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

व्यन्ग विवाद के बिना

नई दुनिया में 15-10-10 को प्रकाशित व्यन्ग
 

आजकल कुछ मन नहीं लग रहा है, बिलकुल मजा ही नहीं आ रहा। कुछ भी हमारे मनमाफिक नहीं हो रहा है। अब कोई विवाद ही नहीं चल रहा। अयोध्या प्रकरण में शांति रही। कॉमनवेल्थ गेम्स भी अच्छी तरह निपट गए। भारतीय खिलाड़ी भी ठीकठाक चल गए। फिल्म-जगत में शांति है। नेताओं के बयान भी उधम वाले आ रहे हैं लेकिन फिर भी कोई विवाद नहीं हो रहा। सचमुच ऐसे बुरे दिन तो हमने कभी देखे नहीं।

भई, हम तो शुद्ध हिंदुस्तानी हैं। घर से लेकर राजनीति के मंच पर बिना विवादों के जी नहीं पाते हैं। हमें तो हर चीज में विवाद की आदत पड़ी हुई है। शुरू से संयुक्त परिवार में रहे हैं। यही देखते आ रहे हैं। बचपन से ही मां प्रोत्साहित करती रहती थी कि कैसे चुपके से दादा-दादी की बात सुनी जाए और फिर उन्हें नमक-मिर्च लगाकर पिताजी को सुनाया जाए और मां के पक्ष में एक अच्छा सा विवाद खड़ा किया जाए।

बड़े हुए तो देश की किस्मत भी परिवार की तरह हो गई। सरकारें भी पूरी तरह संयुक्त परिवार पैटर्न पर चलने लगीं। कितने ही दल, कितने ही समर्थन। नाना प्रकार के विवाद, नाना प्रकार की बातें। लोगों की विवादात्मक आत्मा अधिक ही जाग उठी। कभी किसी ने किसी धर्म को कुछ कह दिया और दंगे हो गए। कभी किसी की बात का कोई मतलब निकाल दिया और झट से शहर बंद, राज्य बंद और देश बंद कर दिया। मीडिया की महत्ता अधिक बढ़ी तो भाई लोग सुर्खियों में आने के लिए तरह-तरह के विवाद पैदा करने लगे। साहित्य, कला, फिल्म, पत्रकारिता, खेल, सामाजिक सेवाएं और राजनीति आदि में विवाद घुसने लगे। सभी जगह विवाद। अब तो ऐसी आदत पड़ गई कि सुबह चाय के साथ एक विवाद नहीं मिले, तो हाजमा बिगड़ जाता है। अब ऑफिस में भी कहां तक काम करें। जब तक चाय की दुकानों पर दो-चार घंटे इन चीजों पर बहस नहीं कर लेते थे, तब तक मजा ही नहीं आता।

पर अब तो सब कुछ सूना-सूना लग रहा है। कैसा जमाना आ गया। कहां तो हम एक साधारण-सी बात को पकड़कर पूरे शहर में धूम मचा देते थे। कोई बोले तो विवाद, कोई न बोले तो विवाद। पर अब देख रहे हैं कि सब जगह शांति है। यह देश कैसे चलेगा। हमारा क्या, हम तो ऑफिसों के किस्सों से भी विवाद उठा लेंगे। पर इन राजनीतिक हस्तियों का क्या होगा। ये तो यही मानकर चल रहे हैं कि एक राजनेता का सच्चा कर्तव्य यही है कि वो विवादों को वैज्ञानिक ढंग से उठाए, सामाजिक तौर से प्रस्तुत करे और राजनीतिक ढंग से फायदा उठाए।

इतनी विवाद लायक बातें हो रही हैं। पर जनता के कान पर जूं ही नहीं रेंग रही। पहले तो विवादों से ही सरकार बन और बिगड़ जाती थी। पर अब कुछ नहीं हो रहा। सो कम से कम मेरे लिए नहीं तो उनके लिए तो जरा सोचो। विवादों के बिना जग कितना सूना है
 
   
   


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2 टिप्‍पणियां:

डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने कहा…

nice........

ZEAL ने कहा…

पहले विवादों से सरकार बनती बिगडती थी , अब शायद लोग immune हो गए हैं विवादों के । कोई नया हथियार अपनाना पड़ेगा , जो विवादों कों replace कर सके। और समाज में अपना स्थान बना सके। वर्ना अपने देश में विवादों की कोई कमी नहीं है।