शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

व्यंग्य बीवी और सरकार

डेली न्यूज़ में 13-10-10 को प्रकाशित  

सरकार से मुझे हमेश शिकायत रही है। वो हमेशा मेरे लिए कोई न कोई परेशानी खड़ी कर देती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। सरकार ने कॉमनवेल्थ का आयोजन क्या कर लिया। मेरी तो मुसीबत ही खड़ी हो गई है। बीवी ने नाक में दम कर दिया है। घर आता हूं तो बस वो पीछे पड जाती है। वो यही कहती है कि 'तुमने घर का क्या हाल बना रखा है। कोई भी आता है, इसका हाल देखकर नाक-भौं सिकोड लेता है। मेरे घर वाले भी अब ताने देने लगे हैं। अब तो फर्नीचर बदल दो, कार ले आओ। थोडा स्टेटस ऊँचा करो अब तो सहेलियां भी हंसी बनाने लगी है। मुझे तो बहुत ही शर्म आती है।'

मैं उसे समझाता हूं, बैंक की पासबुक बताता हूं, नाना प्रकार के उधार के बिल पेश करता हूं। यहां तो घर के राशन तक के लाले पड रहे हैं। मुन्ना की फीस का प्रश्न है। मुन्नी को डाक्टर ने खून की कमी बताई है, उसे अच्छी खुराक देनी है। यह भी बताता हूं। कि दो महीने गांव मनीआर्डर नहीं कर पाया। अम्मा-बाउजी मुसीबत में है। गांव का घर साहूकार के पास गिरवी रखकर रोटियां चल रही है। सो तुम्हारी कार, सोफे कैसे ले आउं।'

पर वो हंसती है। कहती है कि अकेले तुम्हारी ही हालत खराब थोड़े ही है। सरकार को भी देखो। वो भी तो कॉमनवेल्थ करा रही है। उससे तो तुम्हारी हालत मुझे बहुत ठीक लगती है।कहीं से भी उधार ले लो।आजकल मुए लोन देने के लिए पीछे ही पड़े रहते हैं। मैं उसे बहुत समझाता हूं, कहता हूं। देख लोन लेना बड़ी बात नहीं है। पर भई लोन चुकाना भी तो पड़ेगा यह सब कैसे होगा।वो फिर झुंझलाती है। 'सारी दुनिया की बातें तुम मुझे ही समझाते हो। सरकार को नहीं देखते। अकेले तुम्हारे साथ ही तो मुसीबत नहीं है। बिचारी सरकार ही कितनी परेशानियों से घिरी रहती है। जरा उसे ही देखो। कितनी मंहगाई बढ़ रही है। लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। पर सरकार के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं है। कश्मीर का हाल बुरा हो रहा है। दिन-रात आतंकवादी घटनाऐं पीछा नहीं छोड ती। नक्सलवादी कभी भी उधम कर बैठते हैं। कहीं बाढ है, तो कहीं सूखा हो जाता है। कभी साम्प्रदायिकता सिर उठा लेती है। इतने पर भी बिचारी इतना बड़ा भंडारा कर रही है। नासपीटे मेहमान कितनी हंसी उड़ा रहे हैं, बार-बार धमकी दे रहे हैं, खाने से लेकर सभी चीजों की क्वालिटी में मीनमेख निकाल रहे हैं। पर सरकार कितनी शालीनता से इन्हें झेल रही है।'
मैंने धीरे से यही कहा,' देखो, इतना बड़ा खर्चा करूंगा। तो फिर बाकी चीजों के लिए पैसा कहां से लाउंगा। भई, जो तुम खर्चे बता रही हो और फिर जो जिम्मेदारियां हमारे उपर है। इन्हें देखकर मेरा हार्ट अटैक नहीं हो जाए।'

वो झुंझला गई,' अब जिम्मेदारियां अकेले तुम्हारे उपर ही है। क्या करते हो तुम। असली जिम्मेदारियां देखनी है। तो सरकार को देखो। कितनी बुरी हालत में है। क्या है खजाने में, कर्जा ही कर्जा है। फिर भी इतना बड़ा भंडारा करा रही है। खाने को दाने नहीं है फिर भी पांच पकवान खिला रही है और फर्स्ट क्लास अरेंजमेंट। क्या शाही ठाठ-बाट से अतिथियों की सेवा कर रही है। और एक तुम हो, जरा सा मेरे घर से कोई आ जाए तो तुम्हारा मुंह चढ जाता है। और दिल की बात तो तुम करो ही मत। दिलदार होना तो कोई हमारी सरकार से सीखे।देखो, पाकिस्तान से दिन-रात कलह चल रही है, मुआ आतंकवादी भेजता रहता है और दूसरी ओर सरकार के खींसे में कर्जे के अलावा कुछ नहीं है। खुद के बाढ पीढितों के पास खाने को नहीं है। पर दिल देखो, झट से करोड़ों डालर दान में दे दिए।'कहकर उसने हिकारत भरी नजर से मुझे देखा।

अब मैं क्या करता। फिर भी अंतिम हथियार फेंक ही दिया।,' देखो, घर का हाल बुरा है। मुन्ने की तबियत कभी ठीक नहीं रहती। मुन्नी को डाक्टर ने अच्छी डाईट खिलाने के लिए कहा है। और फिर अम्मा-बाबूजी.......'

पर उसने वाक्य पूरा ही नहीं करने दिया,' बस रहने दो... अकेले तुम्हारे घर में ही बीमारी है। कभी सरकार का हाल देखा है। वो बिचारी कभी कहती नहीं है तो क्या । उसका तो पूरा कुनबा ही बीमार है। कोई स्वान फलू से जूझ रहा है, कोई डेंगू से पीड़ित है। लाखों लोग टी०बी० के शिकार हे , बच्चे कुपोषण से पीडित है। दवाईयों के अभाव में रोजाना हजारों लोग दम तोड देते हैं। पर कभी वो किसी के सामने रोना रोती है। आज तक सरकार के मुंह से एक भी बात नहीं सुनी। क्या शान से जीती है और एक तुम हो.. दो जनों की क्या जिम्मदारी आ गई। बस घबरा गए।' कहकर वो कोपभवन में चली गई।

और मैं.... मेरे पास करने को है ही क्या। मैं तो बस लोन के फार्म लेकर बैंको के चक्कर लगा रहा हूं। बस कहीं से भी कर्जा मिल जाए और बीवी की इच्छा पूरी हो जाए। सरकार की लाईफ स्टाईल ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा.

 

 

 

 

1 टिप्पणी:

रवि रतलामी ने कहा…

हा हा हा... ग़ज़ब का व्यंग्य.