दैनिक भास्कर:रागदरबारी में 12.12.09 को प्रकाशित
भगवान सबकी सुनता है। उसके घर में देर है अंधेर नहीं। भगवान की मर्जी है तो कुछ भी हो सकता है। गरीब को अमीर बना सकता है तो राजा को रंक बनाने में भी देर नहीं करता। महारानी को गदद्ी से उतार सकता है तो किसी को भी गदद्ी पर बिठा सकता है। आजकल भारतीय क्रिकेट टीम के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।
वो भी क्या दिन थे। जब वो सभी से हार जाते थे। कभी उन्होंने भेदभाव नहीं किया। बंगलादेश से लेकर श्रीलंका तक हार जाने के लिए दुनिया में उनका नाम था। कभी भी, कहीं भी, किसी से भी हार जाना उनके स्वभाव में शुमार था। उन्होंने कभी भी चंद ईनामों की खातिर विरोधियों का दिल नहीं दुखाया।
हालंाकि टीम में इतने बड़े-बड़े नाम थे। लेकिन अहंकार तो उन्हें कहीं छू भी नहीं गया था। कितना भी लोग क्रिकेट का भीष्म पितामह बता दें। पर जरूरत के समय उन्होंने कभी भी महाभारत नहीं लड़ी। कलियुग के इस माहौल में उनका व्यवहार सदा सतयुग के दार्शनिक की भंाति रहा। जिसे कभी भी यह भौतिकवाद जीवन छू नहीं पाया।कितनी ही बार मामूली से टारगेट पर अपने विकेट गंवाकर पेवेलियन लौट गए। नेट प्रेक्टिस से सदैव वो बचते रहे। सदा यही सोचते रहे कि चार दिन की जिंदगी है। दो दिन तो मैच खेलने में चले गए, तो बाकी का जीवन शंाति से व्यतीत हो, यही कोशिश करते रहे। उन्होंने खेल को सदैव खेल भावना से लिया। जीत गए तो ठीक है, हार गए तो कोई बात नहीं। उनका दर्शन सदैव समृद्ध रहा। मरने के बाद सब बराबर रहता है, कौन हारा, कौन जीता।
उनका और आलोचना का चोली-दामन का साथ रहा। वे क्रिकेट को छोड़कर सभी क्षेत्रों में नए-नए प्रयोग करते रहे। मन हुआ तो नाच लिए, मन हुआ तो स्टेज पर फिल्मी सितारों के साथ अभिनय कर लिया। फिल्मी अभिनेत्रियों के साथ नाम जोड़कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि वे केवल पिच पर ही नहीं फिसलते बल्कि प्रेम के मैदान में भी रन आउट हो सकते हैं। वे वाकई क्रिकेट के बादशाह के साथ-साथ प्रेम के युवराज भी हैं।
उन्होंने सदैव देश की भलाई के बारे में सोचा। मंदी के इस दौर में जहंा बाजार को उपभोक्ताओं की जरूरत है। वहंा यह विज्ञापन लिए गली-गली भटकते रहे। आजकल माल बेचने में कितनी मुश्किल होती है। भले ही लोगों को पानी नहीं उपलब्ध हो पाया हो लेकिन वे गरीब-अमीर सभी को समान रूप से शीतल पेय बंाटते रहे। उन्होंने क्या नहीं बेचा। कितना थक जाते थे। इसी थकान के कारण वो विकेट के बीच भागने में कमजोर रहे और कितने ही मौकों पर रन-आउट भी हो जाते थे।
वे सभी एक बड़े योद्धा की भंाति थे। लड़ने में कभी पीछे नहीं हटे। घायल हो जाते थे पर वीरता के कारण चोटों को छिपा-छिपाकर लड़ाई के मैदान में डटे रहते थे।
पर अब सब कुछ बदल गया है। अब वो अच्छा माल भी बेच रहे हैं और क्रिकेट भी अच्छा खेल रहे हैं। देखते-देखते हारने की आदत को उन्होंने जीतने में बदल दिया है। अब चूंकि जीतने लगे हैं इसलिए ‘जो जीता वो ही सिकंदर‘। सो आजकल सभी उनकी अराधना में लगे है। टी0वी0पर, अखबारों में, पत्रिकाओं में सभी जगह पर उनकी ही चर्चा है। सब उनके ही गुण गा रहे हैं। चारों ओर भारतीय टीम के डंके बज रहे हैं।
सारे खिलाड़ी प्रसन्न हैं। आखिर क्यों न हो। पता नहीं कितने दिनों के लिए नंबर वन के पायदान पर हैं। आजकल वक्त का भरोसा नहीं है। बहुत जल्दी-जल्दी स्थितियंा बदलती है। भारतीय टीम को नजर भी जल्दी लगती है। आज हीरो तो कल जीरो बनते भी देर नहीं लगती। े
लेकिन अब जब सब उनकी पूजा-अर्चना में लगे हैं, तो भला मैं क्यांे पीछे हटूं। मैं भी आजकल उनके ही गुण गा रहा हूं। दिन-रात, सुबह-शाम उन्हीं के गीत गा रहा हूं। जब तक वे जीतते रहेंगे, यही माहौल रहेगा। अब और तो भला मैं क्या कर सकता हूं। बस यही प्रार्थना कर सकता हूं। जैसे उनके दिन फिरे, वैसे सबके दिन फेरे।
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