दैनिक हिन्दुस्तान में 16.01.2010 को प्रकाशित व्यंग्य
आईऐ, राष्ट्र्मंडल खेल नगरी दिल्ली में आपका हार्दिक स्वागत है। हालंाकि खेल के प्रारंभ होने में अभी महीनों बाकी है। हमारी तैयारी जोरों पर है। रोजाना बयान आ रहे हैं। हम तो तैयार हैं। पर आप लोग, जो विदेश से यहंा खेलने आ रहे हैं। आपका शारीरिक व मानसिक रूप से तैयार होना जरूरी है ताकि आप इस देवताओं की भूमि पर खेलने लायक बन सके।
यदि आप रेलवे स्टेशन पर उतरेंगे। तो भीड़ को हार्दिक स्वागत करते हुए पाऐंगे। इतने सारे प्रशंसक देखकर आप घबरा जाऐंगे। आप पाऐंगे कि जितना आप बाहर निकलने की कोशिश कर रहे होंगे, उतनी ही ताकत से ये आपको अंदर धकेल रहे होंगे। अब आपकी संघर्ष दिखाने की बारी है। अब आप जोर लगाइए। हंा, यहंा हो सकता है। कि आपके कपड़े फट जाऐं या चोट लग जाए। हो सकता है, आप उतर ही न पाऐं। पर आप हिम्मत नहीं हारियेगा। अभी तो बहुत संघर्ष बाकी है।
आप जब स्टेशन से बाहर आऐंगे। तो बहुत से लोग आपके पीछे पड़ेगे। वे आपको आपकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए इतने प्रतिबद्ध हैं। कि आपस में लड़ भी सकते हैं। यह ‘अतिथि देवो भव’ का नायाब नमूना है। खैर, अब जैसे-तैसे आॅटो-टैक्सी वालों के चंगुल से छूटोगे तो हो सकता है। आपके सामने ‘लो-फलोर बस’ आ जाऐ। आप चाहो तो इसमें चढ़ सकते हो। लेकिन आग बुझाने के साधनों के साथ चढ़ना। अपने घर से फायर-प्रूफ जैकेट लेकर चलना, क्योंकि इसमें आए दिन आग लगती रहती है। हंा, ब्लू-लाईन बसों से दूर रहना। क्योंकि अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है। उसमें चढ़कर तो तुम्हें लगेगा कि संसार वाकई नश्वर है। क्योंकि वहंा कुछ भी हो सकता है।
अब तुम आ जाओगे। अपनी खेल-प्रतियोगिताओं के मैदान में। नए-नए स्टेडियम और इमारतें तुम्हारा भव्य स्वागत करेंगी। तुम सब-कुछ नया-नया देखकर होश खो बैठोगे। तुम अति उत्साह में आ जाओगे। पर थोड़ा ध्यान रखना। गोला-वोला, जो भी फेंकना हो, थोड़ा धीरे-धीरे फेंकना। यह क्या है कि तुम्हारे आने से चंद घंटे पहले ही तैयार हुई है। और तुमने कुछ अधिक जोश दिखाया तो प्लास्टर बाहर आ जाएगा। और इससे तुम्हारा तो क्या जाएगा। एक तो देश की किरकिरी होगी और एक गरीब ठेकेदार ब्लैक-लिस्टेड हो जाएगा। भले ही देश का नहीं तो उस गरीब का तो ख्याल रखो। क्यूं बिचारे के पेट पर लात मार रहे हो।
खेलोगे तुम ही। पदक भी तुम्हें जीतने हैं। हम तो वैसे भी दार्शनिक हैं। हमारे लिए ये स्वर्ण, रजत सभी मिटट्ी हैं। हमें कोई मोह नहीं है। तुम आराम से जीत लेना। ज्यादा दम लगाने की जरूरत नहीं है। हमारा पर्यावरण में प्रदूषित गैसें ज्यादा हैं। कहीं दम फूल गया तो फिर परेशानी में पड़ जाओगे।
अब खेलकर जाओगे। तो कम से कम कुछ जगह तो घूमना चाहोगे। खूब घूमो, हमारे यहंा बहुत लोग आते हैं। हंा, थोड़ा बटुआ वगैरह संभालकर रखना। कीमती सामान लेकर मत निकलना। खरीददारी करने का मन है। कुछ निशानी लेकर जानी है। तो जरूर खरीदना पर थोड़ा ध्यान रखना। तुम्हारी चमड़ी देखकर बिचारे गिनती भूल जाते हैं। और इन्हें केवल यह याद रहता है। कि गणित में केवल गुणा का प्रयोग ही किया जाता है। यदि ये किसी चीज की कीमत सौ रूपए बोले। तो तुम दस की बात करना। हंा, दस में भी नुक्सान हो। तो हमारी जिम्मेदारी नहीं है।
अब तुम्हारे जाने का दिन भी आ जाएगा। अब अतिथि से जाने के लिए कहना तो बिल्कुल गलत है। पर भैया हमारे यहंा इतने दिन का अरेंजमेंट है। हम तो रोक भी लेते। पर फिर क्या सावे भी शुरू होने वाले हैं। हमने ये शादी के लिए किराए पर दे रखा है। अब तुम आश्चर्य मत करना। क्या कहा आगे के खेलों के लिए। अरे भैया, यह तो प्राईवेट काम है। तब तक तो हड़प्पा की तरह लगने लगेगा। अगले खेलों का तो बजट अलग ही रहता है। वहंा फिर नए बनाऐंगे। फिर तुम भी जरूर आना। हमारे यहंा तुम्हारा भव्य स्वागत है
2 टिप्पणियां:
बढ़िया, धारदार व्यंग्य है. कसा हुआ और बेहद पठनीय भी.
एक अच्छा व्यंग्य
मज़ा आ गया
एक टिप्पणी भेजें