नवभारत टाईम्स में 29.12.2009 को प्रकाशित व्यंग्य
तेलगांना के नए राज्य की घोषणा से नए-नए राज्यों की मंाग शुरू होने लगी है। इसी तरह चलता रहा तो आने वाले बीस-तीस सालों में देश का न जाने क्या होगा। प्रस्तुत है सन दो हजार पचास में चांदनी चैक के एक वरिष्ठ नेता का आत्मकथ्य।
‘‘सचमुच समझ में नहीं आता। क्या किया जाए। लोग हमारी मंाग को नाजायज बताते हैं। लेकिन यह बिल्कुल गलत है। हमारे इलाके को राज्य का दर्जा मिलना ही चाहिए। पहले ही दिल्ली चार राज्यों में बंटा है। यदि एक राज्य और हो गया। तो किसी का क्या जाएगा। जब पूरा भारत सैकड़ों राज्यों में बंटा हुआ है। तो एक हमारे साथ अत्याचार क्यों किया जाए। अब मुम्बई को ही लो। मराठी-मानुष करते-करते अब वो तो पंाच राज्यों में बंट चुकी है। सुना है अब वहंा भी अंधेरी को दो राज्यों में बंाटने की मुहिम चल रही है। अंधेरी-पूर्व और अंधेरी-पश्चिम।
इसलिए हमें ही लग रहा अब वक्त आ गया है। कि हम इस बात के लिए संघर्ष करना शुरू कर दें। जब इन्होंने कनाट प्लेस को नया राज्य बना दिया तो हम चंादनी चैक वालों ने क्या बिगाड़ा। यहंा हम सैकड़ों साल से पिसे जा रहे हैं और ये नए-नए मोहल्ले राज्यों का दर्जा पा जाते हैं। अब साहब, आप ही देखिए, हमारे साथ कितने अत्याचार किए जा रहे हैं। सबसे ज्यादा पर्यटक हमारे यहंा घूमने आते हैं। कोई लाल-किले में गंदगी फैला रहा है, तो कोई जामा-मस्जिद जा रहा हैं। कोई यहंा पराठे खाने आ रहा है। तो कोई लस्सी सुड़क रहा है। अरे, भई परेशानी तो हमीं को होती है। हमारे यहंा तो भीड़भाड़ बढ़ती जा रही है।
अब कितना अच्छा होगा। जब चंादनी चैक में
विधानसभा हो जाएगी। हमारा अपना मुख्यमंत्री होगा। कोई भी हो सकता है। इस बात पर अभी बहस शुरू करना नहीं चाहते। नहीं तो फिर अभी मीडिया विरोध शुरू कर देगी। कि हमने सत्ता पाने के लिए ऐसा किया है। भई, हम तो विकास के मुदद्े को लेकर यह प्रस्ताव लाए हैं। आप हंस रहे हैं, अरे भई अब हमारा विकास होगा। तो क्या पूरे देश का विकास नहीं होगा। कोई हम देश से अलग हैं। हमारे पास पूंजी आएगी तो देश में ही तो इन्वेस्ट करेंगे। बिल्कुल ठेठ देसी आदमी हैं। कोई विदेश लेकर थोड़े ही भाग रहे हैं पूंजी को। अपने चंादनी चैक में कितनी जरूरत है पैसों की।
और फिर कितने कार्यकर्ता हैं। आज इनके मन कितने उदास हैं। जब ये कनाॅटप्लेस वाले कार्यकर्ताओं को लाल बत्ती की गाड़ी में घूमते देखते हैं। तो इनके सीने पर संाप लोट जाता हैं। दिल उदास हो जाता है बिचारों को। ये कल के छोकरे कनाटप्लेस के नए राज्य बनने के कारण विधायक बन बैठे। और बरसों से यहंा जूते घिस रहे हैं। तो यहंा कुछ नहीं हो पा रहा। भई मन तो सभी का करता है। हमने भी जनता की सेवा में जीवन झोंक दिया। अब हमारा मन भी तो सम्मान पाने को करता है।
सो अब हमने पक्का फैसला कर लिया है। बस फौरन मंाग करने वाले हैं। अभी पान की दुकान पर नत्थू से चर्चा की तो वो भी इस बात के लिए राजी था। कि अब तो चंादनी चैक को नए राज्य का दर्जा दे दिया जाए। कार्यकर्ताओं से भी बात चल रही है। वे भला क्यूं मना करेंगे। वो तो बिचारे हाईकमान के आगे कभी कुछ नहीं कहते। और फिर हम ऐसा कर रहे हैं तो कोई हमारा अकेले का फायदा थोड़े ही है। हम तो सदैव से बहुजन-हिताय के लिए सोचते रहते हैं।
अब आप सोच रहे हैं जब हमने सोच ही लिया है। तो फिर परेशानी किस बात की है। फिर मंाग काहे नहीं कर रहा है। प्रधानमंत्री मना करेंगे। नहीं-नहीं, वो बात नहीं है। प्रधानमंत्रीजी तो भले आदमी हैं। कुछ नहीं कहते, देश में कहीं से कोई भी उठकर चला जाता है। वो फौरन दे देते हैं। बहुत अच्छे मन के हैं। किसी का दिल नहीं दुखाते। आप सोच रहे होंगे। जब सब-कुछ ठीक है। तो फिर परेशानी किस बात की। अजी साहब, सही बात तो यह है। कि हमारे देश में एकता ही नहीं है।। इधर हम चांदनी-चैक में नए राज्य की बात कर रहे हैं, सोचते हैं चलो मोहल्ले का विकास हो जाए। पर उधर ये लाल-किले वाले हमारे रास्ते में रोड़े अटका रहे हैं। सुना है वो भी अलग राज्य की मंाग करने वाले हैं। कहते हैं कि लाल-किले पर हर साल प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं। इसी हिसाब से उनका भी एक अलग राज्य का हक बनता है।
और फिर मैं जानता हूं। कि कोई लाल-किले वाला इसकी मंाग नहीं कर रहा। पर ये परसादी लाल मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में है। भई हम तो कहते हैं। कि चलो मिल-बैठकर बात कर लेंते हैं। भाई-भाई हैं, कुछ भी समझौता कर लेंगे। पर वो मान ही नहीं रहा।अब प्रधानमंत्रीजी तो ठहरे भले मानुष। अगर जोर देंगे तो वे लाल किले को भी अलग राज्य बना देंगे। लेकिन इससे देश की एकता और अंखडता को कितना खतरा है।
पर साहब अब हमने सोच लिया, जो सोच लिया।कोई हमने अकेले ने ही थोड़े देश की एकता का ठेका ले रखा है। हम तो जा रहे हैं बस मंाग करने। बस अब नए राज्य चंादनी चैक की घोषणा होने ही वाली है। सो तैयार हो जाइए।
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