दैनिक भास्कर: 28.12.2009 को प्रकाशित व्यंग्य
मुझे समझ में नहीं आता, मैं क्या करूं। आखिर बात ही ऐसी है। विज्ञापनों ने मेरी परेशानियंा बढ़ा दी हैं। मैं लाख अपने पर नियंत्रण रखने की कोशिश करता हूं। पर हो नहीं पाता।
किंतु इसमें मेरी गलती नहीं है। मैं सीमित बजट वाला आदमी। भले ही दो समय भरपेट रोटी नहीं खा पाता। लेकिन जैसे ही कैटरीना कैफ मुझसे टी0वी0 पर कहती है। कि तुम यह क्रीम लगाओ। तो मैं भला कैसे इंकार कर सकता हूं। और फिर मैं कहूं भी क्या। कितने प्यार से देखती है वह। आंखों में आंखे डालकर, मुस्कराती हुई। इतने प्यार से तो कभी बीवी ने नहीं देखा। उसने तो अपना सारा समय लड़ाई में ही बिताया। सो मैं मजबूर होकर क्रीम खरीद बैठता हूं।
वाकई बहुत ही अच्छा लगता है। नहीं तो हम तो अपने जमाने में हीरोईन की मुस्कराहट देखने के लिए तरस जाते थे। पर अब जमाना कितना बदल गया है। एक बीस-पच्चीस रूपए की क्रीम के लिए खुद कैटरीना कैफ बोल रही है। सचमुच मेरी तो अंाखें ही गीली हो जाती है। कितनी मजबूर होगी नहीं तो कोई ऐसे बोलता है क्या। और फिर हम गप तो मार नहीं रहे। उसने खुद हमारी अंाखों में झांककर मुस्कराते हुए बोला कि तुम क्रीम ले लो न।
और फिर सही बात तो यह है कि चलो गलती से कह दिया हो तो कोई बात नहीं। भई मुंह से निकल गया। हम जैसे साधारण आदमी से भला ऐसी बातें कोई क्यों करेगा। पर एक घंटे में पंाच-पंाच बार । और वो भी सभी के सामने। एक तरफ हमारा पूरा परिवार बैठा है। दूसरी तरफ कैटरीना प्यार से कहे जा रही थी। हम तो शर्म के मारे मर गए। हमने झट से दूसरा चैनल बदल दिया। पर दीवानगी देखो, वहंा भी कैटरीना कैफ। अब आप ही बताओ। हम क्या करते। एक क्रीम के लिए भला उसका दिल कैसे तोड़ सकते थे। और फिर वो तो बिचारी यहंा तक कह रही थी कि टयूब नहीं खरीद सकते तो कोई बात नहीं दो-दो रूपए के किफायती पाउच ही ले लो। हमसे तो बेइज्जती बर्दाश्त नहीं की गई, हम झट से क्रीम की बड़ी टयूब खरीद लाए।
पता नहीं आजकल हममें ऐसा क्या जादू आ गया। कि सब ही हमारे पीछे पड़े रहते हैं। अब अपनी दीपिका पादुकोण और करीना भी आजकल बार-बार यही बात कहती है। बस लेना है तो यह वाला साबुन ले लो। हमने बहुत कहा कि हम तो भई आजकल कैटरीना के कहने में चल रहे हैं। उसे बुरा लगेगा। पर वो ही बात। बार-बार मुस्कराना, अंाखों मे झांकना। फिर एक बार कहे तो हम ऐसे भी नहीं है कि खरीद ही लें। जब मिले तब एक ही बात। भई यह वाला साबुन ले लो। अब कैसे दिल तोड़ पाते। सो खरीद ही लिया। और वो तीन-तीन बटट्ी। पत्नी को शक भी हुआ। क्या बात है। जिन्दगी भर तो मिटट्ी से नहाते-नहाते बीत गई। अब यह खुशबु वाला साबुन कैसे। अब क्या कहते। बस चुप्पी लगा गए। अब इनकी इज्जत थोड़े ही उछाल सकते थे।
अब और आपको क्या बताऐं। हम तो बड़ी मुसीबत से गुजर रहे हैं। उधर अपने अक्षय भैया एक दस रूपए की बोतल पिलाने के लिए कितने खतरों से गुजरते हैं, मेरा तो दिल दहल जाता है। भैया, एक बोतल के लिए क्यों जान को खतरे में डालता है। जान है तो जहान है। कोई और भले ही दुनिया में तेरी बोतल न पिए। पर मैं तो जरूर पीउंगा। क्यों ट््रक के चपेटे में आ रहा है।
बात यहीं तक थी, तो ठीक था। पर उधर अपने सचिन व धोनी भैया को भी लो। वे भी दिन-रात पीछे पड़े हैं। बार-बार एक ही बात कह रहे हैं। भैया अच्छे व्यंग्य लिखना चाहते हो तो हमारी एनर्जी का सीक्रेट देखो। यह वाला पाउडर दूध में डालकर पीओ। अब कौन बताता है इतनी बड़ी बातें। कौन चिंता करता है। आजकल लोग अपने अलावा किसी दूसरे की तो सोचते ही नहीं है। इतने बड़े खिलाड़ी हैं, देश के लिए खेल रहे हैं। वे बिचारे अपनी जान लगा देते हैं। तो क्या हम उनके कहने से पाउडर दूध में डालकर नहीं पी सकते।
अब इतनी बातें सुनकर बड़ी उलझन में पड़ जाते हैं। क्या किया जाए। हमने भी तय कर लिया। भले ही बिक जाऐं। पी0एफ0 लोन सभी खत्म हो जाऐ। पर इन मासूमों का दिल नहीं तोड़ना है। ये जो भी कहेंगे, वो लेंगे। फैंटेसी बड़ा सुख देती है। सभी लोग इसी के पीछे तो भाग रहे हैं। कर्ज की आखिरी बूंद तक खर्च हो जाए। पर अब इनका ध्यान जरूर रखना है। सो रख रहे हैं।
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